🛑 निर्वैयक्तिकता और परिवर्तनशीलता लोक साहित्य का अपरिहार्य गुण है ~ जनवादी रचनाकार देवेन्द्र आर्य का समीक्षात्मक आलेख🥎 भारतीय कला परम्परा का एक विशेष आकर्षक पक्ष लोककला का है। लोककला का सम्बन्ध सीधे-सीधे लोकजीवन से होता है, लोकजीवन में माटी के स्पर्श एवं गंध की आत्यंतिकता के कारण लोककला का संसार एक विस्तृत क्षेत्र तक […]
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समीक्षा ~ कैलाश मेहरा का व्यंग्य संग्रह “कतरनें”
🌈 कतरनें ~ न्याय व्यवस्था को कटघरे में खड़ा करता कैलाश मेहरा का ताजा व्यंग्य संग्रह ~ समीक्षा ~ गोपाल गोयल ● ==========================● जनकवि केदारनाथ अग्रवाल की धरती बाँदा मे कविता की परंपरा से अलग हटकर व्यंग्य लेखक का उद्भव हिन्दी साहित्य में एक अद्भुत योगदान है। केदार बाबू की तरह पेशे से वकील कैलाश […]