कौशल किशोर प्रतिरोध के कवि~ उमाशंकर सिंह परमार

📚 पुस्तक चर्चा ~ “वह औरत नहीं, महानद थी” ~ कवि कौशल किशोर ~
समीक्षक :~ उमाशंकर सिंह परमार
🟣 कवि कौशल किशोर मूल रूप से वाम कार्यकर्ता हैं। उन्होने विभिन्न आन्दोलनों, अभियानों तथा आयोजनों का उत्तरदायित्व निर्वहन किया और आज भी लगातार सक्रिय हैं l
🔴 पार्टी अभियानों के प्रति समर्पण के कारण इन्होने अपने लिए, विशेषकर रचनात्मक जीवन के लिए कुछ अधिक नही किया। इनके एक्टिविस्ट स्वरुप ने इनके रचनाकार पक्ष को दबा कर रखा। यह केवल कौशल किशोर की सच्चाई नही है। यह 1967 से लेकर 80 के दशक तक के बहुत से वामपंथी लेखकों की सच्चाई है। उस दौर के एक्टिविस्ट लेखकों, जैसे~ महेन्द्र नेह, कौशल किशोर आदि ने रचना से अधिक अपने भीतर के कार्यकर्ता को तरजीह दी।
🔵 यही कारण है, इस पीढी के अधिकांश रचनाकार चर्चा से बाहर रहे। हमारे साहित्य की यह त्रासदी रही है कि जमीनी लोकधर्मी कार्यकर्ताओं की अपेक्षा अभिजात्य लेखन को चर्चा के लिए अधिक उपयुक्त माना गया। महेन्द्र नेह और कौशल किशोर इसके प्रमाण हैं।
🟣 कौशल किशोर का पहला कविता संग्रह “नयी शुरुआत” शीर्षक से तैयार हुआ, लेकिन अभी तक प्रकाशित नही हुआ। इसमें 1967 से लेकर 1976 तक की कविताओं को एकत्र किया गया है। 1976 के बाद उनका दूसरा कविता संग्रह “वह औरत नही महानद थी” 2017 में छपकर आया।
🟢 पहले और दूसरे कविता संग्रह के बीच लम्बा अन्तराल रहा। इस लम्बे गैप पर मैंने कौशल जी से चर्चा की, तो ऊन्होने बताया कि मैंने बीच में काफी लम्बे समय के लिए कविता लिखना छोड दिया था। यह वह दौर था, जब मुल्क में वाम आन्दोलन हासिए की तरफ जाने लगा था। संयुक्त अर्थव्यवस्था, जो इस देश के लिए एक आम सहमति थी, वह टूट कर निजीकरण की ओर बढ चली थी।
🏀 फासीवाद धार्मिक उन्माद और हिंसक गतिविधियों के साथ अपनी जडें मजबूत कर रहा था। भूमंण्डलीकरण ने शोषक वर्ग को वैश्विक पूँजीवाद से जोड दिया तथा शोषक और शोषित के सवाल एक देशीय नही रह गये। स्थानीयता और वैश्विकता की बहस तेज हो चुकी थी। अस्मिताओं का उभार हो चुका था। वह नये व्याकरण के साथ सामूहिकता के खिलाफ संघर्ष कर रहे थे।
🔴 विचारधारा के अवसान की बात होने लगी। वर्गीय संघर्ष को नकारा जाने लगा। इस गम्भीर और विपरीत समय में कोई भी कार्यकर्ता हो, वह “विचारधारा” के पक्ष में लिखेगा।
🟣 कौशल किशोर इस समय शान्त नही थे। अपने सांगठनिक उत्तरदायित्व के साथ वह इन नये खतरों पर विभिन्न पत्रिकाओं में लगातार लिख रहे थे। इन लेखों का संग्रह भी “प्रतिरोध की संस्कृति” नाम से छपकर आ गया है।
🔴 “वह औरत नही महानद थी” में दो समयों की कविताएँ हैं। एक खण्ड है~ “एक मुट्ठी रेत”। इसमें 1986 तक की कविताएँ हैं, तो दूसरा खण्ड है~ “अनन्त है यह यात्रा”, जिसमें 2009 से लेकर अब तक की कविताएँ हैं। पहले खण्ड में 29 कविताएँ तथा दूसरे खण्ड में लगभग 35 कविताएँ हैं। कुल मिलाकर 64 कविताएँ इस कविता संग्रह में हैं।
🔵 आर्थिक उदारीकरण और विस्तार के दौरान की एक भी कविता इस संग्रह में नही है। शायद यही समय 1986 से लेकर 2009 तक का “कविता न लिखने” का समय है।
🟣 कवि कौशल किशोर के इस कविता संग्रह को पढकर एक बात का अन्दाजा हो जाता है कि कवि की काव्य मनोभूमि के निर्माण में साठोत्तरी कविता, विशेषकर धूमिल का बडा योगदान है। साठोत्तरी कविता “मोहभंग” की कविता थी। एक मुट्ठी रेत की भावनिर्मिति “मोहभंग” ही है। कविता संग्रह का दूसरा खण्ड भूमण्डलीकृत हिन्दुस्तान की जमीनी समस्याओं के सापेक्ष रचनात्मक समस्याओं का नये विजन के तहत वर्णन है। अस्मिता विमर्श और हासिए के सवालों को लेकर “अनन्त है यह यात्रा” खण्ड बेहद महत्वपूर्ण है। सबसे बडी बात है मोहभंग यहाँ प्रतिरोध में बदल गया है और शत्रु बुर्जुवा की जगह वैश्विक पूँजी से संचालित फासिज्म हो गया है।
🔵 धूमिल और नक्सलवाडी कविता व भाषा दोनों से कवि मुक्त हो गया है। वह समाज की यथार्थ संरचनाओं को लेकर चरित्र आधारित कविताएँ लिखकर जीवन अनुभवों के “समकालीन” बनाए रखने में बेतरह सफल दिखते हैं।
🟢 अक्सर ऐसा नही होता है। उमर के पड़ाव में रचनाकारों के जीवन अनुभव चुकने लगते हैं। वह अपने आपको दोहराने लगता है। वह नये रचनात्मक खतरों को नजर अन्दाज करते हुए अपने दशक मे जड़ होकर बैठ जाता है। यह खतरा बहुत से कवियों में है, जो अपने दशक को ही दोहरा रहे हैं।
🟣 कौशल इस खतरे से बच गये हैं। दलितों, आदिवासियों, स्त्रियों को लेकर लिखी गयी कविताओं में उनके इस नयेपन को “समकालीनता” के साथ जोड़कर परखा जा सकता है।
•=================================•
👁️ प्रस्तुति:~ गोपाल गोयल ~ संपादक 🌻 मुक्ति चक्र
9838625021 / 9910701650
editor.muktichakra@gmail.com
•=================================•

Leave a comment