सुमन आशीष की गजलों में प्रतिरोध के स्वर~ डाॅ रमाकांत शर्मा

🟣 सुमन आशीष की अच्छी, सच्ची और सीधी-सादी ग़ज़लें~ डॉ. रमाकांत शर्मा
🔵 अक्सर होता यह है कि किसी शाइर की ग़ज़लों से गुज़रते हुए हमारी नज़र अशआर की कलाबाज़ी, चौंकाने की प्रवृत्ति, शब्दों का अनूठा विन्यास, सांकेतिकता, बिम्ब, मिथक आदि पर जा कर ठहर जाती है। संवेदना, अनुभूति, करुणा, वेदना, समय, समाज और देशकाल के संकट कहीं पीछे छूट जाते हैं।
🏀 कहने का आशय यह है कि शाइर “अंदाज़ -ए -बयाँ” और वह भी कुछ “और” के चक्कर में अटक जाते हैं।भटक जाते हैं। और तो और आलोचक भी शब्दों के खेल में शामिल हो जाते हैं।
🔴 बहरहाल। “सुमन आशीष” के साथ ऐसा नहीं है।इनकी ग़ज़लें सीधी-सादी होने के साथ-साथ अच्छी और सच्ची हैं। यहाँ हमें साधारण का सौंदर्य मिलेगा। कहीं कोई बड़बोलापन नहीं मिलेगा।सहजता इनका विशेष गुण है।सुमन जी के सुप्रसिद्ध ग़ज़ल संग्रह:~ “मैं तो हूँ अलमस्त” की ग़ज़लें अपने समय और समाज से प्राथमिक स्तर से ही जुड़ी हुई हैं। वह जुड़ाव आगे तक बना रहता है।
🥎 समय का सच आईने में छवि की भाँति स्पष्ट दिखाई देता है और समाज की विसंगतियाँ, विडम्बनाएँ जहाँ सहज ही बेपर्दा हो जाती हैं। समाज में परिव्याप्त निरंतर सांस्कृतिक पतन, सड़ी गली रूढ़ियाँ और पाखंड, सियासत के छक्के पंजे, महिलाओं के साथ व्याप्त अत्याचार, गरीबों की दीन हीन दशा, निज़ाम की सनक और तानाशाही के विरुद्ध प्रतिरोधी तेवर और निरंतर आवाज़ें “सुमन आशीष” की ग़ज़लों को महत्वपूर्ण बनाते हैं।
🔴 “सुमन आशीष” अपनी ग़ज़लों में “कहन” की जगह, “क्या कहा जाना है” पर विशेष ध्यान देती हैं। वे वाहवाही लूटने में विश्वास नहीं रखतीं। रचनाकर्म को गंभीरता से लेने वाली महिला हैं। “सुमन आशीष” की शुभेच्छा तो इन दो अशआर में व्यक्त हुई है :~
जीवन के कंधों पर सुख का बस्ता हो
दिल बच्चा बन जाए कितना अच्छा हो
तोपों, बंदूकों, बारूदों के बदले
बाज़ारों में अब फूलों का धंधा हो।
🏀 मनुष्य के स्वार्थी सोच और संकीर्ण दृष्टि के विरोध में सुमन जी कितनी सादी सरल शब्दावली में जीवन की इस सचाई को छोटी बह्र में अभिव्यक्त करती हैं, ज़रा ग़ौर फरमाइएगा :~
केवल खुद से यारी है
यह भी क्या बीमारी है।
सुनती हूँ पेड़ों की चीख
जब भी चलती आरी है।
🟣 “सुमन आशीष” सियासत के छक्के पंजों से बख़ूबी वाकिफ़ हैं। राजनीति का स्तर दिनों दिन गिरा ही है। राजनेता जनता को कैसे मूर्ख बनाते हैं, यह सचाई भी किसी से बचकर नहीं। सुमन जी ने अनेक अशआर इस विषय पर लिखे हैं मसलन :~
ग़रीबी को हटाने के सभी नारे हुए झूठे,
अमीरी को हटाने की सियासत को फ़िकर दे दो।
कौन सी जादूगरी है इस सियासत में कहो,
एक ही दिन में हुए वे लखपति कंगाल से।
आ गए शायद इलेक्शन भीड़ दिल्ली में बढ़ी,
हो रहे हैं रोज़ झूठे वायदे पंडाल से।
🔴 “सुमन आशीष” क्यूँकि सचाई की पक्षधर हैं, इसलिए वे बेख़ौफ़ होकर कहती हैं :~ नहीं लेना नहीं देना यही ज़्यादा ज़रूरी है,
करूँ क्यों जी हुजूरी आज सच कहना ज़रूरी है।
और फिर वे यह कहने से नहीं चूकतीं कि :~
हज़ारों लोग रोटी के लिए घर छोड़ देते हैं,
सियासत की नदी को गाँव तक बहाना ज़रूरी है।
🔵 अपने एक शेर में यह शाइरा राजनीति पर सीधे सीधे इल्जाम लगाती हैं कि :~
सभी एक दूसरे के ख़ून के प्यासे हुए जाते,
सियासत इस तरह से कौम को पागल बनाती है।
🏀 एक बात और। “सुमन आशीष” हार कर भी हार स्वीकार नहीं करतीं, बल्कि जीत का ख़्वाब बराबर देखतीं हैं, वह निराश होकर बैठने वालों में नहीं हैं। यह सोच उनका सर्वहारा के प्रति सम्मान दर्शाता है। सर्वहारा भी हार स्वीकार नहीं करता। वह गिरता है। उठता है, फिर चलता है। सुमन जी अपनी एक ग़ज़ल में कहतीं हैं :~
हार कर हर बार लौटी हूँ समर से,
दिल में फिर भी इक सिकंदर जी रही हूँ।
मैं दिखूँ बाहर भले ही रेत लेकिन,
रेत के नीचे समंदर जी रही हूँ।
🔴 सुमन जी कभी निराश नहीं होतीं। वे निराशा के अंधकार में भी रौशनी की किरण ढूँढ़ लेतीं हैं। यहाँ तक कि ख़ुद आगे बढ़कर पथ पर एक चिराग़ जला लेतीं हैं। वे अपने बारे में साफ़ शब्दों में कहतीं हैं :~
मैं तो हूँ अलमस्त, तुम्हारी तुम जानो,
हूँ ख़ुद से आश्वस्त, तुम्हारी तुम जानो।
बाहर मृत्यु भीतर कितना जीवन है,
मैं उसकी अभ्यस्त, तुम्हारी तुम जानो।
🥎 मैं समझता हूँ कि अपने बारे में यदि हम जान गए, तो दूसरे के बारे में जानना भी इतना कठिन नहीं होगा ।
🏀 इतना कह कर मैं अपनी वाणी को विराम देना चाहूँगा। मुझे पूर्ण विश्वास है कि मोहतरमा “सुमन आशीष” के इस ग़ज़ल संग्रह का हिंदी और उर्दू जगत में उचित सम्मान होगा।
🥎 अंत में सुमन जी को मेरी ओर से आत्मिक बधाई और अशेष शुभकामनाएँ। मुझे उनसे यह उम्मीद है कि वे रचना के क्षेत्र में पूरी सक्रियता बनाए रखेंगी और अच्छा से अच्छा लिखने का प्रयत्न करेंगी।
🔵 डॉ. रमाकांत शर्मा 9414410367
“मैं तो हूँ अलमस्त”~
🥎 ग़ज़ल संग्रह~ सुमन आशीष
श्वेतवर्णा प्रकाशन, नोएडा
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👁️ प्रस्तुति:~ गोपाल गोयल ~ संपादक 🌻 मुक्ति चक्र
9838625021 / 9910701650
editor.muktichakra@gmail.com
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2 thoughts on “सुमन आशीष की गजलों में प्रतिरोध के स्वर~ डाॅ रमाकांत शर्मा

  1. आदरणीय वाकई आप सच्चे समीक्षक और आलोचक हैं, आपने इन ग़ज़लों की सारगर्भित समीक्षा करके मेरी और ग़ज़लों की रूह को छुआ है,,,मैं आपके प्रति कृतज्ञता प्रकट करती हूं

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