🔴 देशी आधुनिकता और सांस्कृतिक सोच के आगीवाण कवि डॉ आईदान सिंह भाटी ~ डॉ. रमाकांत शर्मा
🥎 प्रदेश और देश की साहित्य अकादमियों के शीर्ष पुरस्कारों से सम्मानित कवि डॉ आईदान सिंह भाटी की काव्य कृतियों से गुज़रते हुए मैंने अनुभव किया कि यह कवि देशी आधुनिकता और सांस्कृतिक सोच का सशक्त हस्ताक्षर है।
🟣 भाटी जी भावनाओं के रेले में बहने वाले कवियों जैसे कवि नहीं हैं। इनका विवेक हर पल सजग और जागृत रहता है। वे चीज़ों को चलताऊ ढंग से नहीं लेते, बल्कि अपनी खुली आँख से देखते परखते हुए कविताकर्म में संलग्न होते हैं।इस वैशिष्ट्य की साक्षी हैं आईदान सिंह भाटी की अधोलिखित काव्यकृतियाँ :~
- हंसतोड़ा होठां रौ साच
2 रात – कसूंबल - आँख हींयै रा हरियल सपना
🔵 डॉ. आईदान सिंह भाटी का राजस्थानी कविता संग्रह “आँख हींयै रा हरियल सपना” प्रकाशन के साथ ही देश भर में चर्चित और प्रशंसित हुआ, जब उसे केंद्रीय और राजस्थान की साहित्य अकादमियों ने एक साथ सम्मानित और पुरस्कृत किया। इस पुस्तक के ब्लर्ब पर मैंने अपने “मनोगत” में लिखा है :~
“डॉ. आईदान सिंह भाटी सही अर्थ में आधुनिक और समकालीन हैं। इनकी आधुनिकता आधुनिकतावादियों की सी
आधुनिकता नहीं है। आईजी की कविताएँ देशी आधुनिकता के रंग में रंगी हैं। पूर्व प्रकाशित दो कविता संग्रहों से आगे का पड़ाव है~ “आँख हींयै रा हरियल सपना”।
🥎 प्रकृति और मनुष्य के रिश्ते वहाँ प्रगाढ़ हुए हैं। लोकधर्मिता इनकी कविताओं का स्वभाव है। लोक का दुःख – दर्द इनके मन आँगन में हर वक़्त चीख पुकार मचाए रहता है। इसी वजह से आईदान सिंह भाटी की कविता के शब्द “रंग बिरंगा मखमल” जैसे न बन कर “बळबळता खीरा बण जावै”। “आज़ादी” का सच उनकी नज़र में कुछ इस प्रकार है :
( 1 )
आजादी~
टाबरां नै पोटावती
पांगळी दादी ।( 2 )
आजादी~
नीं नर अर नीं मादी
पेटां माथै आयोड़ी वादी ।( 3 )
आजादी~
ढाकै री मलमल माथै
मोटोड़ी खादी।
🔴 डॉ. भाटी की कविताओं की ख़ूबी यह है कि वे सहज, स्वाभाविक और स्वतःस्फूर्त हैं। विचार-खनिज और जीवन द्रव इन्हें महत्वपूर्ण बनाते हैं।सघन संवेदना और प्रबुद्ध प्रतिबद्धता का योग इनकी कविताओं में ख़ूब सधा है। भारतीय श्रेष्ठ काव्य परम्परा का विकास यहाँ दिखाई देता है। इस दृष्टि से आईदान जी की “बुगचौ”, “बाजार में सारंगी”, “काईं व्हियौ व्हैला पछै चिड़कियां रौ”, “आँख हींयै रा हरियल सपना”, “एक दिन जरूर पाछौ आवैला मास्टर”, “परमाणु रै पळकां बिच्चै” आदि विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं। अपनी एक कविता “मारग” में वे लिखते हैं :~
कोरा कागद कीना काळा
नीं हेज नीं बतळावण
सात सलाम रै बिना
कींकर उतरैला सबद
आत्मा रै आभै मांय।
🟣 कविता वस्तुतः संवेदना की क्रिया है। आईजी की कविताओं में संवेदना का पाट व्यापक है। यह संवेदना ही मनुष्य भाव की रक्षा करती है।उसका परिष्कार और संवर्धन भी करती है। यही कारण है कि आईदानसिंह भाटी की कविताओं में मरुधरा धड़कती सी नज़र आती है। मनुष्य और प्रकृति के रिश्ते प्रगाढ़ हुए हैं।
🏀 डॉ. आईदान सिंह भाटी अपने “पुरोवाक्” में “मिनख” को सचेत करते हुए बहुत ठीक लिखते हैं:~
“कारपोरेटी” अर “तकनीक” जगती में कविता री जिम्मेवारी दूणी व्हैगी है। भांत – भांत री देसजतावां रा प्रतिरोधी सुर ई मिनखपणे री माशाल बणेळा। जे कवितावां अर दूजी कळावां इण “सांकड़ी सेरी” में नीं वड़िया तौ पछै आपां कनै “ओढन” अर “बिछावण” सारू कीं नी बचैला। राजस्थानी रै लोक कवि तौ सदियाँ पैली आपां नै चेताया हा~ “बैतां बैतां व्है गई, रात म्हारा हाडा रै !” काईं तो बिछासां, काईं ओढसां ?
🥎 डॉ. आईदान सिंह भाटी के लिए कविता हक़ीक़त में कुछ इस प्रकार है :~
कविता अंधारपख री कूंत
हां – कई मिनखां सारू
फगत कोरी “इन्द्रजाळ” है कविता। म्हारी नजरां में “कोरो तीखौ सवाल है कविता”।
🟣 लोक कवि की यह चेतावनी कभी उनकी आँख ओट नहीं हुई। इसी का सुफल है कि कवि भाटी की कविताएँ अपने मार्ग से कभी च्युत नहीं हुईं।
🥎 डॉ. आईदान सिंह भाटी की काव्यभाषा और शिल्प ही ऐसा है कि हमारे सामने दृष्यबिम्ब साकार होने लगते हैं।
🔴 शमशेर बहादुर सिंह और नागार्जुन की तरह इनकी कविताएँ श्रव्य होने के साथ – साथ दृश्य भी बन पड़ी हैं। रेत – हेत , रूंख – भूख, पशु – पक्षी, जीव – जिनावर इनकी कविताओं में बोलते – बतियाते से नज़र आते हैं। अपनी आँख हींयै रा हरियल सपना में आईजी ने कहा है:~
हरियल – सपनां रै मुखड़ा में
कद आगी रा अलख उदासी
इसी बातां भी सपना व्है ज्यूं
लेट – पीठ री गाथा बणगी।
🟣 कविताओं में सहज रूप से आई लयात्मकता और रवानी इनकी कविताओं को बेहद संप्रेषणीय बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं।कोई भी सहृदय श्रोता और पाठक इनकी कविताओं का दीवाना बन जाता है। ऐंद्रिक क्रियाशील बिम्बों का रचाव और राजस्थानी भाषा का सौंदर्य इनकी कविताओं के प्राण तत्व हैं। यही कारण है कि आईदान सिंह भाटी की कविताएँ अपने निजी मुहावरे के चलते दूर से पहचानी जाती हैं।
🥎 आमजन की व्यथा कथा, भाव अभाव, हर्ष संघर्ष और मरु जीवन की दुश्चिंताओं के साथ रेत के संग उड़ती बिखरती आशाओं निराशाओं के शब्दचित्र पाठक के मन को गहराई तक प्रभावित करते हैं। इसका कारण है इनका भोगा हुआ मरुस्थलीय यथार्थ। धरती धोरां की के इस हृदय – संवाद का आत्मिक स्वागत करता हूँ।
🏀 मुझे पूर्ण विश्वास है कि आईदान जी के आगामी कविता संग्रह राजस्थानी काव्य जगत में “माईल स्टोन” रचने में क़ामयाब होंगे।
🔵 डॉ. रमाकांत शर्मा 94144 10367
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👁️ प्रस्तुति:~ गोपाल गोयल ~ संपादक 🌻 मुक्ति चक्र
9838625021 / 9910701650
editor.muktichakra@gmail.com
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बहुत उम्दा लेख लिखा है आपने आई जी की कविता और रचनात्मकता के बारे में। आपको और गोपाल गोयल जी को साधुवाद और आई जी को बधाई।
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आभार आपका बंधुवर
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